Aaimata Ji

जय आई श्री अंम्बे माई, जय आई श्री दुर्गे माई।

जय आई श्री अंम्बे माई, जय आई श्री दुर्गे माई।

आई माता जी के बारे में

राजस्थान के जोधपुर जिले के बिलाड़ा नामक कस्बे के दीवान की हवेली में बने आईजी माता के मंदिर में यह चमत्कार रात-दिन होता है। जोधपुर से लगभग 76 कि.मी. दूर पूर्व में स्थित बिलाड़ा को राजा बलि ने बसाया था। यहाँ आई माता का प्राचीन मन्दिर है। आईजी मुल्तान और सिंध की तरफ से आबू तथा गोड़वाड़ प्रान्त होती हुई ई. 1504 में बिलाड़ा आई और यहीं पर स्वर्ग सिधारी। आई माता को सीरवी समाज के लोग पूजते हैं। इनका गुरू बिलाड़ा का दीवान कहलाता था। यह बहुत धनी होता था। सीरवियों के गुरु / दीवान स्वयं को राठौड़ राजपूत बताते हैं। कहा जाता है कि सीरवी राजपूत थे जो जालोर क्षेत्र में राज करते थे। जब अल्लाउद्दीन खिलजी ने जालोर क्षेत्र पर अधिकार कर लिया तो ये लोग बिलाड़ा क्षेत्र में आ गये और क्षत्रिय धर्म त्यागकर कृषक हो गये। बाद में आई माता ने इन्हें अपने पंथ में मिला लिया। आईजी भी एक राजपूत स्त्री थी। कहा जाता है कि एक बार अंग्रेज पोलिटिकल एजेंट ने राजा मानसिंह से पूछा कि मारवाड़ में कितने घर हैं। राजा ने उत्तर दिया कि मारवाड़ में ढाई घर हैं। एक तो रियां के सेठों का है, दूसरा बिलाड़ा के दीवानों का है, बाकि के आधे घर में पूरा मारवाड़ है।

आई पंथ को मानने वाले वाममार्गी समझे जाते हैं क्योंकि इस पंथ के स्त्री और पुरुष प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को रात्रि में प्रीतिभोज करते हैं। मृत्यु होने पर इन्हें दफनाया जाता है तथा उस पर नाम मात्र की आग डाली जाती है। वृक्ष बचाने के उद्देश्य से आईजी ने अपने पंथ में भूमि दाग देने (दफनाने) की परम्परा स्थापित की।

सीरवी लोग आईजी के मन्दिर को दरगाह कहते हैं जिसमें सदा एक चिराग जलता रहता है तथा चौकी पर गद्दी बिछी रहती है। इन दोनों के ही दर्शन किये जाते हैं। चिराग की कालिख काले रंग की बजाय पीले रंग की होती है जो केसर कहलाती है। यह मन्दिर दीवान की हवेली में स्थित है।

जीजी की सुंदरता के बारे में सुनकर मालवा सल्तनत के सुल्तान महमूद शाह खिलजी ने जीजी से शादी करने का निश्चय कर बीका डाबी के पास प्रस्ताव भेजा और उसकी बेटी का हाथ माँगा। दुविधा के साथ डाबी ने इस प्रस्ताव के बारे में जीजी को बताया। जीजी ने अपने पिता से इस शर्त पर हाँ करने को कहा कि शादी हिन्दू रीति और परम्परा के अनुसार होगी। हिन्दू परम्परा में कन्या के पक्ष को वर पक्ष के सभी लोगों.के भोजन का प्रबंध करना होता है। इस बात से महमूद खिलजी को आश्चर्य हुआ कि बीका डाबी एक झोपड़ी से एक सुल्तान की बारात की भोजन व्यवस्था कैसे कर पाएगा । लेकिन, जीजी ने अपनी झोपड़ी से हजारों लोगों के भोजन की व्यवस्था कर दी। महमूद इस बात का राज जानने के लिए उतावला हो उठा। एक दिन वह जीजी को उनके वास्तविक दिव्य रूप में देखकर भौंचक्का रह गया। उस दिन खिलजी ने वचन दिया कि वह अपनी कठोरता छोड़कर एक अच्छा राजा बनेगा और उसने सदा ही एक अच्छा शासक बनने का प्रयास किया। उसने अम्बापुर में अम्बे माता का एक मन्दिर बनवाया। जीजी अपने चमत्कारों से चारों तरफ प्रसिद्ध होने लगी। कुछ वर्षों के बाद उन्होंने एक बैल पर बैठकर राजस्थान की तरफ अपनी यात्रा शुरू कर दी।